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किनारा बस पास ही है

Updated: Sep 15, 2023

By Shubhangi Tripathi




हुई कश्ती में सवार सोच के मैं,

देखूं समुंदर पार दुनिया को भी मैं ।

साफ आसमान और नीचे उठती लहरें,

रोमांच से भरा सफर,होगा कितना यह ।


डोलते हुए नाव,पहुँची बीच समुंदर मे,

डर सा थोड़ा अब पनपने लगा मन मे मेरे।

उस पार दुनिया के सपने छोड़ अब

इस सफर को ही समझने लगी मैं ।


किस ओर मोङू अपनी कश्ती मै,

दिखे न अब कोई छोर मुझे ।

अब बह रही थी कश्ती मेरी,

बस समुंदर के इशारे पर ।



सहसा आसमान मे गरजी बिजली,

उठी लंबी लहरों की होड़ हो जैसे ।

एक बिजली सी कौंधी मेरे मन-मस्तिष्क मे भी,

यूँ ही नही खोने दूंगी,अपनी कश्ती को मै।





नही चलेगी कश्ती मेरी अब,

लहरों के मचलते इशारों पर।

ठाना मैने ,अब पहुंचाना,

कश्ती को है किनारे पर ।


देख कर ध्रुव तारे को,

दी कश्ती को नई दिशा ।

रोमांच से भरा सफर मेरा,

हो गया था शुरु पुनः ।


मन मे था अटल विश्वास,

किनारा बस है यहीं पास।


By Shubhangi Tripathi



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