कलयुग
- Hashtag Kalakar
- Sep 10
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By Dr. Susheela Chaurasia
अवधी के हैं चार युग,
हम कलयुग के वासी हैं,
पाप जहां का निवासी है,
मौत अनिश्चित रूप में आती है,
पल भर में जीवनी लेकर चली जाती हैं,
अपनो को रोता छोड जाती है,
हम कलयुग के वासी हैं।
सच्चा इंसान था वो हट चुका है,
उसका चेहरा दो रूपो में बट चुका है,
एक रूप है अच्छा उसका, जो कलयुग से थक चुका है,
दूसरा रूप तांडव हर ओर मचाती है,
हम कलयुग के वासी हैं।
यहां मंदिर में भगवान बैठे हैं,
पर मुँह से कुछ नहीं कहते हैं,
पाप पुन्य सब देखते रहते हैं,
कर्मो के यहाँ सब अभिलाषी हैं,
उसके ही दास दासी हैं,
हम कलयुग के वासी हैं।
By Dr. Susheela Chaurasia

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