By Priyanka Athia
अजीब हो तुम,
उस भगवान को कितना प्यार करते हो तुम,
पहला ब्रह्मा,
दूजा विष्णु,
तीजा महेश,
आगे अनेक धाम, अनेक नाम,
कहां-कहां घुमो तुम,
क्या-क्या पुकारो तुम।
दिन-रात की पूजा, काम नहीं दूजा,
क्या फूल चढ़ाओ , क्या वस्त्र पहनाओ,
दूध चढ़ाओ , भोग लगाओ ,
क्या मंदिर सजाओ।
कितने सचे हो तुम ,
उस भगवान से कितना प्रेम करते हो तुम ।
किंतु ! वो जो पूरी सृष्टि संभाले ,
जो पल में बनाय और पल में मिटा ढाले,
जो दिन की रात करे , बिन मोसम के बरसात करे,
वो केवल क्या "अठिया " तुमसे ,"
फूल , दूध , भोग की भाल करे ?
वो तो केवल हर मनुष्य से कहे, की अपना यह विचार बनाओ ,
मुझसे पहले किसी भूखे को खाना खिलाओ,
मुझे चढ़ाया दूध किसी गरीब को पिलाओ,
वो जो वस्त्र मेरे लिए है , किसी जरूरतमंद को पहनाओ,
अपने माता-पिता को घर बैठाओ,
किसी का हक़ छीन के उसका दिल ना दुखाओ,
यह मेरा धर्म है, यह तेरा धर्म है,
रोज़ के झगड़ों में, मासूमों का खून ना बहाओ,
जात-पात के भेद में दो दिल ना सताओ,
वो जो अनाथ है, उसका सहारा बन जाओ,
बहुत आसान नहीं है, बहुत मुश्किल नहीं है,
बस मेरे प्यार को मेरे लिए , इन बातों में जताओ।
By Priyanka Athia
❤️❤️
🖤🙂
Great!!
Beautifully described 😌
"कर्म-और-भ्रम" is a thought-provoking and introspective poem that delves into the complex concepts of karma and illusion, inviting readers to reflect on the intricate nature of human existence. Through its carefully crafted verses, the poem offers profound insights into the human condition and prompts readers to question the nature of reality and the consequences of their actions. The poem seamlessly transitions from questioning traditional acts of devotion to highlighting the true essence of spirituality. It reminds readers that true devotion lies in acts of kindness, compassion, and service to others. The poet emphasizes the importance of selflessness and highlights the moral responsibilities that come with faith. The poet skillfully explores the theme of karma, depicting the intricate web of cause and effect…