top of page

कनखजूरा

By Aleena Kabeer


जब बारिश अपनी बूँदों से मिट्टी को गुदगुदाया तब कनखजूरा समूह एक साथ हंसी। छोटी-छोटी कनखजूरे एक साथ दुनिया देखने केलिए अलग-अलग दिशाओं में निकला। प्रेमी-प्रेमिकाऍ खुदकी दुनिया में पूरी तरह डूब गई। वे कभी-कभी पेड़ों के नीचे, मिट्टी में और कभी-कभी घर के अंदर और कभी-कभी छिपकली को भी हराकर दिवारों पर भी नज़र आने लगा।

कुलमिलाकर दस दिन होगायी रिदा अपनी कमरे से बाहर ना आकर। बारिश इस दस दिनों में खूब हो रही थी। रिदा बारिश को पसंद नहीं करती। रिदा को बारिश में उठी गिली मिट्टी की खुश्बू से संकत नफ़रत थी। सच कहूँ तो उसे बारिश से नहीं बारिश में भीगी कनखजूरों से डर था। ऐसा डर की कनखजूरों को दिख-भी जाएँ तो उल्टी और चक्कर अपने साथ आ जाती है।

"कनखजूरों से कौन डरता है?" , उसकी पापा ने गुस्से से पूछा। माँ आज भी चुप थी। "शयद कनखजूरों ने उसे बूरी तरह काटा होगा" रिदा की भैय्या इतने में हस पढ़ी। रिदा को बचपन से कनखजूरों से डर है। कई बार माँ ने टॉक्टर को दिखाने की कोशिश भी किया। लेकिन रिदा की पापा ने बोला -"पागल है क्या डॉक्टर को दिखाएं? हम पर हंसेंगे सब" - कहकर बात डालती रही। लेकिन हर बार बारिश की मौसम में रिदा घर से नहीं निकलती। बचपन में माँ की गोद डर को छिपा सकती थी। लेकिन अब रिदा के साथ बड़ी होगयी डर को छिपाने में गोद अक्सर हार जाती है। रिदा को कीड़ा और सांप से इतना डर नहीं लगता जितना कनखजूरों से होती हैं। उसकी सहस्रपाद रिदा को उसकी अनेक समस्या और समाज की सहस्र नियमों की याद दिलाती है। ऐसा करो वैसा नहीं करो...लड़की हैं तो यह करो वो करो...बात करने की तरीका...चलने की तरीका ...सब उसे हमेशा तनाव में डालती है। इस तनाव से बचने केलिए ही जटिल मौसम में बाहर नहीं निकलती।



रिदा अपनी फोन कॉल काटा। रिदा किसी से भी ना बात करना चाहती थी। सच कहूँ तो रिदा के पास लोगोंकी प्रश्न की जवाब नहीं थी। नीचे से कुछ गालियों की आवाज़ आ रही थी। शायद आज भी माँ और पापा मेरेलिए लड़ रहा होगा। लेकिन मैं करूं तो क्या करूं। कोई भी नहीं समझता मेरी डर को। दिन-रात मैं मेहनत करती हूँ इस डर को मिटाने केलिए। लेकिन कितनी भी कोशिश करूं जिंदगी तो कनखजूरों देखकर ही रुक जाता है। खुलकर हसते हुए बहुत दिन हो गयी। ऐसा नहीं चलेगा , इस डर को मिटाना ही होगा- रिदा ने ठान लिया।

सूरज की आने से ही दो छोटे कनखजूरे एक साथ दुनिया को देखने निकले। वे धीरे-धीरे अपने-अपने जिंदगी की समस्याओं के बारे में बात करते-करते छ्ल रही थी। एक ने कीचड़ मैं खेलने की बारे में खूब कहा तो एक ने दीवार पर चड़ने की साहस के बारे में कहा। बातों में खोकर वे एक साथ पेड पर चढ़ने लगी। पेड़ के एक डाली कमरे की खिड़की से होकर कमरे को झाँक रही थी। वे धीरे-धीरे उस डाली में चलने लगा। रिदा लंबी साँस लेने खिड़की के पास गया। रिदा उस डाली को छूये उसके पहले ही एक कनखजूरा नीचे गिरा। गिरने की ताकत से उस छोटे कनखजूर जम गयी। इतने एक ऊँची आवाज़ के साथ रिदा भी नीचे जमीन पर टपक पड़ी। दूसरा कनखजूर एक बार रुका , फिर तोडी देर बाद दूसरी दिशा में चलने लगा।

निशब्द खडी घरवालों के सामने रिदा की चहरे में सफेद कपड़े डालते वक्त टॉक्टर ने कहा -

" अट्टाक थी "।


By Aleena Kabeer









854 views117 comments

Recent Posts

See All

Kainaz

By Deeksha Sindhu It was during the second week of January when the sun shone for the first time that year. As it perched on its throne...

Scattered Memories

By Ankita Tripathi Dearest Lata, I know I’m late in writing my first letter from England. But before I begin, let me ease the weight on...

117 Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
Abhijith Kannan
Abhijith Kannan
Jun 10, 2023
Rated 5 out of 5 stars.

Wow...nice story

Like

SEBINI SATHAR
SEBINI SATHAR
Jun 10, 2023
Rated 5 out of 5 stars.

Very nice🥰

Like

Midhun Prajob Mj
Midhun Prajob Mj
Jun 09, 2023
Rated 5 out of 5 stars.

A tale of a less featured creature 😅✨️

Like

Asiya S
Asiya S
Jun 07, 2023
Rated 5 out of 5 stars.

Such a beautiful story✨

Like

nima m lal
nima m lal
Jun 07, 2023
Rated 5 out of 5 stars.

Nyc one👏👏❤️

Like
bottom of page