By Mansi Gupta
दुनिया बदल रही है पर दुनियादारी नहीं
लोग बदल रहे हैं उनकी जिम्मेदारियां नहीं
लड़कियां छू रही है अंबर तो लड़के भी हाथ बटाते हुए आ रहे हैं नजर
फिर क्यो आज भी भेदभाव की वजह से जलते हैं हजारों लाखों लोगों के वो सपनों वाले घर
एक सवाल है मेरा इसका जवाब मिल सकता है क्या
जब इतना कुछ लिखा जा चुका है
तो क्यों कुछ बदलाव नहीं दिखता
तो क्यों आज भी घरों में समानता का प्रभाव नहीं दिखता जब कुछ बदलाव ही नहीं
तो क्यों आज भी लिखा जा रहा है
बस क्योंकि अच्छा लगता है
या अपने दुख को बयां करने का ये एक तरीका है
या हमारी खुद की मानसिकता बदलने के लिए बार-बार हमारे द्वारा किया⁴ गया प्रयास
आखिर यह सब किया क्यों जा रहा है
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा जो जोरों शोरों से लगाया गया
क्यों उसका परिणाम ही गलत आ रहा है
क्यों अगर एक बेटी पढ़ लिखकर कुछ बन जाऐ तो वो घर कैसे बसाएगी उसकी तो ईगो बीच में अङ जाएगी
क्यों यह माना जा रहा है
क्यों आज भी पहला बच्चा एक लड़का हो यह मन्नत मांगी जा रही है
क्यों बचपन से ही लड़कों को कार
और लड़कियों को गुड्डा गुड़िया दी जा रही है
तो क्यों आज भी लड़कों को बताया जा रहा है
कि रोओ मत रोती तो लड़कियां है
क्यों बचपन से ही बच्चों को भेदभाव सिखाया जा रहा है
क्यों यह माना जा चुका है कि
ये तो लड़की है इसके हाथ में तो बैलेंस अच्छा लगता है
तो ये एक लड़का है ये तो कमाता हुआ ही प्यारा लगता है क्यों लड़की को कम आंका जाता है
तो क्यों लड़को पर काम का बोझ डाला जाता है
क्यों इन्हें आज भी इसी नजरिए से देखा जाता है
क्यों आज भी ट्रांसजेंडर को एक इंसान नहीं अभिशाप माना जाता है
क्यों अगर कोई लड़का मेकअप कर ले तो उसे समलैंगिक का ओदा दे दिया जाता है
क्यों नारीवाद का इतना बोलबाला है
क्यों सरकार ने भेदभाव का डंका इतनी जोर से बजा डाला है
क्यों सारे कानून लड़कियों के हक में बना कर
उन्हें अपराध करने का लाइसेंस दे डाला है
क्यों All men are dog बोला जा रहा है
क्यों पुरुषों को जानवरों के समान माना जा रहा है
क्यों इसे एक छोटी मामूली सी बात मान कर नजर अंदाज किया जा रहा है
क्यो समाज मे इतना भेदभाव किया जा रहा है
क्यों माँ ही अपनी बेटी को चुप रहना सिखा रही है
क्यों लड़कियां ही लड़कियों की दुश्मन बनती जा रही हैं
क्यों जो बदलाव लग रहा है वह बदलाव नहीं बर्बादी का पैगाम है
क्यों एक इंसान को उसके लिंग के हिसाब से बांटा जा चुका है
क्यों एक इन्सान को अपनी जिंदगी अपने लिंग के हिसाब से चुनने का दबाव डाला जा रहा है
क्यों जो जैसा है उसे हम वैसा अपना नहीं रहे हैं
क्यों हम लोगों को जिंदगी जीना सिखा रहे हैं
क्यों हम अपनों से ही अपनों की तुलना किए जा रहे हैं
क्यों हम उनके मनो में एक दुसरे के प्रति खटास भरते जा रहे हैं
क्यों एक समाज का हिस्सा होने के बावजूद भी
उसी समाज में अकेला महसूस कर रहे हैं
क्यों
आखिर क्यों इन सब सवालों का जवाब मुझे नहीं मिल पा रहा है
By Mansi Gupta
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