एक लफ्ज़
- Hashtag Kalakar
- Aug 11
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By Riya Omar
एक लफ्ज़ मुट्ठीभर जज़्बात।
जो आंसू मेरे बह गए
क्या दूं उनका हिसाब।
तुम देख रहे हो जिंदगी मेरी
पल पल कटती रातें अज्ञात ।
छोड़ दूं सब जाने दूं
फिर भी रह जाती बाते हजार।
जहन से निकाल फेंकने का मन
उसके वापिस आने की कोशिशें नाकाम।
मैं इश्क़ में ऊंची उड़ान भरते भरते
भूल बैठा मेरा असमान आजाद।
कैद है उसकी मोहब्बत
रिहाई की गुहारे मेरी
कब तक रहेंगी यूं ही नाकाम।
By Riya Omar

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