एक मजबूर दिवाना !
- Hashtag Kalakar
- Aug 11
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By Abhay Raj Chand
मग़रूर ना था वो, आज वो मजबूर था,
अपनों की परवाह करने वाला आज अपनों से दूर था,
ये जमाना उसे बद्दुआ देता रहा यारों ...
पर वो दिवाना तो आज भी ब-दसतूर था ।
जान था वो सबकी, सबकी आंखों का वो नूर था,
बात करने का वो शौकीन, उसे हंसने का फितूर था,
लोग कहते हैं उसने हकीकत छुपाई थी हकीकत में ...
बस, शायद, इतना सा ही उसका कसूर था ।।
चला गया वो आज सबको अलविदा कहकर ...
अब खुदा को उसने अपना मान लिया था ,
ना जाने कैसी नज़र थी लोगों की जो उसे पहचान ना सके ...
पर खुदा ने उस दीवाने को पहचान लिया था ।
सलामत रहें वो मेरे सारे अपने ...
जाते-जाते उसने ये मिन्नत की है,
और उसकी दिवानगी को देखकर ...
खुदा ने ख़ुश होकर उसको जन्नत दी है ।।
By Abhay Raj Chand

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