By Manisha Keshab
दिन ढलते गए, तुम दूर होते गए
पता नहीं उस बीच, कितने मौसम बदलते गए।।
एक मुद्दत के बाद आज,
हम फ़िर एक दूजे के सामने खड़े थे।
दिल में अरमां भरा हुआ था,
पर ज़ुबान रुकी हुई थी।
मानो वक्त थम सा गया था।।
एक दूजे को देखते,
बीते हुए पलों को याद करते
अपनी अपनी कहानियों में खोए हुए थे।
सिर्फ तुम्हारी आंखे कुछ कह रही थी
और उन्हीं आखों के पीछे छुपी हुई
दर्द भरी दास्तां,
मेरे दिल को छू रही थी।।
सुस्त हवा जैसे मेरे पैरों में जंजीरें बनके मुझे रोक रही थी।
मेरी आंखे तुम्हे बार बार कह रही थी,
थाम मेरा हाथ और दूर कहीं ले चल मुझे ।
अब ज़िंदगी नहीं, बस थोड़ा सा सुकून चाहिए।।
तभी कही से आवाज आई,
उनका क्या, जो अब भी
उम्मीद की धुंधली सी चादर बिछाए,
तुम्हारे ही इंतजार में जी रहे हैं।।
ख्वाबों की जन्नत छोड़ कर,
हकीकत का बोरा उठाए,
मैं अपने शहर की ओर चल पड़ी।।
बस मैं चल रही थी और तुम दूर हो रहे थे,
पता नहीं अब कब मौसम बदलेंगे,
और एक बार हम फिर मिलेंगे।।
By Manisha Keshab
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