*एक पागल की मौत*
- Hashtag Kalakar
- Aug 12
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By Arun Kumar Bansal
बड़गांव रेलवे पुल के नीचे
लिट्टी चोखा के ठेले के पीछे
वह भीषण गर्मी में कांप रहा था
प्यासा था बहुत हांफ रहा था
चीथड़े अलग बदन परे
आखों में कीचड़ भरे
दाढ़ी छाती को छू रही थी
लगातार नाक चू रही थी
बोलता लड़खड़ाती जबान में
जो सुन पाये अपने ही कान में
गुजरते लोगों से कहता रहा
किसी को इतनी फुर्सत कहां
उसको तड़पते हुये रात हो गई
अपने घरों में दुनिया सो गई
किसी ने दो चुल्लू पानी न दिया
बगल भण्डारे में बंट रही थीं पूड़ियां
सुबह सैर पर लोग निकले जो
मरा पड़ा मिला उन्हें वो
गर्दन एक ओर लुढ़की पड़ी थी
बदन पर मक्खियां अड़ी थीं
लिट्टी चोखे वाला ठेला लाया
देखा माजरा तो घबराया
इसलिये नहीं कि वो मर गया
बल्कि दिहाड़ी खराब कर गया
धीरे-धीरे मजमा लगने लगा
कोई न निकला उसका सगा
किसीने 112 पर फोन किया
आते ही पुलिस ने चार्ज लिया
हलचल होती रही बड़ी देर तक
शिनाख्त करने में सब गये थक
कुछ नतीजा न निकला पाया
तब एक ही निर्णय सामने आया
घूमता रहा होगा कोई 'पागल'
बीमार होकर पड़ा होगा निश्चल
पुलिस में अब मची खींचतान
सीमा किसकी कहां मरा इंसान
शहर पुलिस और रेल के बीच
दिन भर मची खींचमखींच
दिन डूबा फिर रात हो गई
दुनिया फिर चुपचाप सो गई
अगली सुबह वो 'पागल' नहीं था
पर उससे लिपटा चीथड़ा वहीं था
लिट्टी चोखे वाले ने मुआयना किया
अपना ठेला लाया और सजा लिया
'पागल' कोई जीव थोड़े न हैं
जो अपने मन की व्यथा कहे
ऐसे लोग यूं ही मरते रहेंगे
पानी तक के लिये तरसा करेंगे
शासक 'पागलों के लिये' रकम तय करते हैं
सरकारी बाबू उसे बड़े चाव से चरते हैं
कोई भी 'पागल' बस जीना चाहता है
दुनियावालों के लिये उसका जीना भी खता है
दुनिया के दाबे हाकिमों ने कानून बनाया
'पागल' सताना सजा है ये लिखवाया
कानून का पालन हो सो काजी बैठाये
काजी क्या इंसाफ करें जब खुद हंसी उड़ायें
By Arun Kumar Bansal

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