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एक झलक

Updated: Jan 23, 2024

By Abhimanyu Bakshi




गुज़रे जो उस तंग सी गली के शोर-शराबों के दरमियान से…, तो आज फिर वही बात याद आई…

आज भी उस चौराहे के मोड़ से घर की हल्की सी झलक दिखाई देती है…

सफ़र से थक-हार कर आने पर यहीं झलक माथे पर पड़ी लकीरों को सुकून सा दे देती है…,

ये इकलौती ऐसी झलक है जो बरसों से मुक़र्रर है…

यूँ तो तक़दीर ने पनाह महलों में दे दी है मगर आज भी सपने में झलक उस ट्रेडें पड़ी दीवार की आ जाती है…

कभी उसी दीवार पर खड़े होकर मैंने आफ़ताब से नज़रें मिलाने की कोशिश की…

कभी उसी दीवार पर खड़े होकर मैंने तारे गिनने की कोशिश की…




मगर बे-इंतिहा लुत्फ़ तो उसी दीवार के साए में बैठकर आँखें मींचकर 

अपनी जुस्तजू करने में आता था… ख़ुद से थोड़ी गुफ़्तगू करने में आता था…

‘हो जो ज़ुबान उस दीवार के पास, तो न जाने मेरे कितने राज़ खोलदे’…

ख़ैर, चलते वक़्त के साथ सभी चीज़ों का स्थिर रहना तो कायनात का उसूल नहीं…

मगर वो पुराना सा घर हमेशा मेरी यादों में आता रहेगा… 

कभी मैं उसका दरवाज़ा खोला करता था, अब वो दिल का दरवाज़ा खटखटाता रहेगा…

उसकी एक झलक, उसका एक ख़्याल मुझे बहलाता रहेगा।।…


By Abhimanyu Bakshi





 
 
 

7 Comments

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Richa Bhatia
Richa Bhatia
Jan 12, 2024
Rated 5 out of 5 stars.

Keep it up... Well done... 👍

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Kartik Pahwa
Kartik Pahwa
Jan 11, 2024
Rated 5 out of 5 stars.

Keep it up👍

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piyushgarment
Jan 11, 2024
Rated 5 out of 5 stars.

very good 👌👏

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piyushgarment
Jan 11, 2024
Rated 5 out of 5 stars.

Awesome 👌👏

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seema pahwa
seema pahwa
Jan 11, 2024
Rated 5 out of 5 stars.

Fantastic👌🏻👏🏻

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