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उसको मैं चांद कहा करता था

By Arti Prajapati


एक खूबसूरत सा चेहरा है

उसको मैं चाँद कहा करता था,

वो धवल चांदनी सी मूरत

मुख से उसके अमृत बहा करता था,

उसको मैं चाँद कहा करता था…

वो मधुर बोली जब भी वो बोले

मेरे कानों में मिश्री सी ;

हर सुर उसका लाजवाब हुआ करता था ,

उसको मैं चांद कहा करता था …

वो उसका हँस कर और हसीन होना ,

वह कुछ भी होने पर, न गमगीन होना ;

अपने आप में जहान हुआ करता था

उसको मैं चाँद कहा करता था…

पर किस्मत ने कुछ ऐसा वार किया,

कुछ दुर्योधन ने उसके साथ दुराचार किया ,

भोली डरती देवी के साथ

उन राक्षसों ने बलात्कार किया,

मैं उसको चुप कराना चाहता था

पर वह हर पल रोती रही,

मैं उसका साथ देना चाहता था

पर वह धुंध में खोती रही;



मैंने उस साथ को खुद से दूर होते देखा

जिसे मैं अपना जहान कहा करता था…

उसको हर पल मैंने रात सा ढलता देखा

जिसको मैं चांद का करता था…

रोते-रोते आखिरकार जब एक दिन थक गई,

दुनिया से भागते भागते कुछ वक्त बाद वो रुक गई ;

फिर उसमें हिम्मत आई ,

अनजानी सी ताकत आई,

वो उठ कर फिर खड़ी हुई थी ,

वो दुनिया से लड़ी हुई थी ,

खुद को उसने एक ख्वाब दिया

दुनिया को खुलकर जवाब दिया

वो उजली सी सुबह निकली

जिसे मैं शांत शाम कहा करता था…

मैंने उसे सूरज से भी तेज चमकते देखा

जिसे मैं महज़ चांद कहा करता था।।


By Arti Prajapati



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