By Himanshu Angad Rai बस एक और बोल आज के लिए, मैं उसकी याद में लिखता हूँ। अब सुरज चढ़ने को है, मैं उसे पाने की एक और कोशीश करता हूँ। उसका नज़ारा दिखता नहीं, मैं देखने को तरस गया, मैं बंजर ज़मीन था वो
By Himanshu Angad Rai दिन भर हसने के बाद रात में क्यों रोते हो, अपने घर का पता याद रखो बार-बार क्यों खोते हो। इस कायनात में जिसको ढूँढते हो मिलेगा तो नहीं, तुम आशिक हो जनाब अपनी कलम क्यों छोड़ते हो।।
By Himanshu Angad Rai मेरा उसका रिश्ता ऐसा है, वो मुझमे आयत कि तरह उतरती है। हमारा मिलकर बिछडना कुछ इस तरह पेश है, जैसे स्याही कलम से बिछडती है। By Himanshu Angad Rai