इरादा
- hashtagkalakar
- Dec 25, 2023
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Updated: Jan 27, 2024
By Harshvardhan Tyagi
इरादा लोहा था, आधा ही गल के रह गया,
ना जाने कौन से, साँचे में ढल के रह गया।
आँख हलकी सी लगी थी, ख्वाब भारी था,
मै कच्ची नींद में, करवट बदल के रह गया।
वो ऐसे रूठ के गया, कि मै मना ना सका,
यूँ कि फिर वक़्त भी, हाथ मल के रह गया।
उसको जब देखा, बेफ़िक्र, किसी और के संग,
ज़रा सा दिल जला और जल के रह गया।
अब भला दोष क्या दूँ, अपने पंखो को,
एक परवाज़ जब, पिंजरे में पल के रह गया।
By Harshvardhan Tyagi
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