By Adyasha Pradhan
ना जाने कितने लेख अनलेख हुए,
भुजाओं के भंडार ,भय द्वार में ही शेष हुए।
जला दिए पुश्तों के कारनामे,
ऐसे क्या ही विध्वंशक तानाशाह हुए।
आत्मसम्मान के ऊपर अनगिनत प्रहार हुए ,
अतिक्रमण से ना जाने कितने वाणी विराम हुए।
सीने में जो आग थी, क्या वो चिंगारी(भभक) विडंबना के लिए पर्याप्त ना थी।
ना जाने कितने हस्ती दफन हुए,
वतन से फिर भी गुमनाम हुए।
धैर्य के तुम परचम लहराते ;
ना जाने कितने रंक-राजा रक्त से लहूलुहान हुए ,
फिर भी मज़हब से बदनाम हुए।
वो उदर कितने काल निराहार रहा;
ना जाने किस सत्कार का
जहर घूंट पीकर उदार रहा,
ऐसे क्या ही ढीठ मानुस जन्म हुए।
तुम खेल गए शतरंज ;
ना जाने कितने नेता बलिदानी कहलाए ,
कितने घाट के धरोहर।
तुम कर्तव्य और व्यंग में अर्थ समझो
जो किताबों में है, उसका भी तुम प्रसंग समझो।
तुम वीर बलिदानियों का भी इतिहास झांको ;
वो भी एक नेता थे, तुम भी एक नेता हो –
खुद के अंदर इंसान की पहचान झांको।।
By Adyasha Pradhan
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