By Mogal Jilani
यह तासीर है लहू की हमारे
लुहु के कतरे कतरे में मुल्क की मुहब्बत है हमारे
मुल्क से मुहब्बत भी, इबादत है हमारी
और यह इबादत भी, हम ब-खूबी कर जायेंगे
हम हे के हमारे हिस्से की कोशिश कर जायेंगे
हम जाम-ए-शहादत भी, शोख से पी जायेंगे)
गर जरूरत हुई तो इस मुल्क की मिट्टी को
हम अपना खुन पीला जायेंगे
खून पिलाएं हम, तो मुल्क की मिट्टी भी बोलगी
हम ना भी रहे फिर भी हवाए खुद ही इंकलाबी सूर फूकेंगी
गर लात भी मरेगा कोई मुल्क की मिट्टी पर
हम है के वही पर फिर तूफान बन कर उभर आयेंगे
By Mogal Jilani
Yuhi aage balhe chalo badhe clo
Khub aala andaj he
Bhot hi pyare alfaz he🥰🫰
Very nice
Khubj Umda Che Bhai