By Ankita Sah
तुम्हारी आदत लगाने से डरती हूँ
दिल बहुत करता है की सब कुछ भूल जाऊँ तुम्हारे साथ
लेकिन फिर से खुद को भुलाने से डरती हूँ
काश कि तुमसे बातें करके सो जाती अभी चैन से
लेकिन इस पल के बाद, और बेचैनी बढ़ाने से डरती हूँ
तोड़ कर चले जाओगे तुम भी बाकियों की तरह
ऐसे साथी को सहारा बनाने से डरती हूँ
एक फौलाद सी बन रही हूँ धीरे धीरे
इस चट्टान को, मोम सा पिघल जाने से डरती हूँ
समेट रही हूँ जो टूटे टुकड़े चुन चुन के
उनके फिर से बिखर जाने से डरती हूँ
इस कदर कुछ जख्म मिले हैं हमें
की फिर से दिल लगाने से डरती हूँ
तुम्हारी आदत लगाने से डरती हूँ
By Ankita Sah
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