आज़ाद पंछी
- hashtagkalakar
- Nov 13, 2024
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By Anvi Girish
पिंजरे की खिड़की खुली
खुली खुली खुली और एक छोटी सी चिड़िया बाहर आई
गर्व के साथ आई
गर्व के साथ आई और खुद से पूछी
मैं कहाँ हूँ?
मैं कौन हूँ?
मैं एक अजनबी हूँ क्या?
बोलों बोलों बोलों, कुछ तो बोलो ना
पैरों से वह चलीं
इस नई दुनिया के घास पे
उसने अपने पंख फैलाए
खुशी और जोश के साथ में
क्योंकि आसमान अंत नहीं
केवल शुरुआत है
उड़ी उड़ी उड़ी, आसमान में उड़ी
और दुनिया से बोली, "देखो मैं कहाँ आई"
मैं खुलके जी रही हूँ
बादल मेरे दोस्त हैं
बारिश में नहारही हूँ मैं
पिंजरे के कैद से आज़ाद होकर
ज़िंदगी से मिलने उड़ रही हूँ मैं
बिजली मुझसे डरती हैं
सूरज मेरी रक्षक हैं
और तारे सब चमकते हैं,
जब मैं चाँद को बुलाती हूँ
मैं आसमान की रानी हूँ
चाँदनी की तरह उज्ज्वल हूँ
सूर्य जैसा उग्र हूँ
और तितली की तरह खूबसूरत हूँ
आग मुझे जला सकती हैं,
पानी मुझे डूबो सकती हैं
धरती मुझे निगल सकती हैं
पर मेरे सपनों को कोई हरा नहीं सकता
मेरे हर साँस में मेरा सपना हैं
हर उड़ान में आत्मविश्वास
मेरे हर आंसू में आशा हैं
जो मुझे आगे बढ़ाता हैं
जब तक मेरे होसले बुलंद हैं,
मेरी हिम्मत झुकेगी नहीं
आज़ाद पंछी हूँ मैं
ये उड़ान रुकेगी नहीं”
By Anvi Girish
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