By Yogesh Kumar Pradhan
सहस्त्र मील का सफर,
समक्ष नाश का कहर,
है काल रात्रि का पहर,
समय भी कुछ गया ठहर।
तुनीर का है अंत शर,
खड़ा हूं लक्ष्य साध कर,
निष्कर्ष एक ही अचर,
अरि का सर या मेरा सर।
हर अड़ंग का शीश काट,
रवि सा ले अरुण ललाट,
विचि से हार जाऊंगा?
नहीं, मैं पार जाऊंगा।
अंतिम चरण का मार्ग शेष,
जय द्वार का सम्मुख प्रवेश,
अंतिम छलांग लगाना है
स्वतः को जीत जाना है।
By Yogesh Kumar Pradhan
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