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अंतर्मन काली रूप गौरी में रक्षित है

Updated: Feb 1, 2024

By Adyasha Pradhan


अंत का आरंभ हूँ –

स्वयं में अति सम्पूर्ण हूँ मैं , 

ध्वस्तू  ब्रम्हांड क्षण भर में 

कि देवता भी कापे रग-रग में । 

कण-कण में क्रोध विष समाहित शोणित नस रख कर , 

अंगार प्रकटू भर-भर में । 

लाँघे जब कोई क्षेत्र मेरे , मद-धड़ हो जाये कण-कण में । 

संहारी हूं मैं, महाकाली हूं मैं ।।



ताने मोह जंजीर के और कहते लोग बैरागी , 

अज्ञात मेरे रक्त अक्ष से –

करूँ अपार जब स्वयं के नल से

अप्राण संचय  हो जाए तल स्थल में । 

अदृष्टत है अंतर्मन के असीमित क्रोध से , 

जो नयन भर मोह लेकर 

ब्रह्मांड स्वरूप नारी का धागा अब तक बंधित है ;

क्योंकि अब भी समय आगम है :


By Adyasha Pradhan




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