अंतर्ध्वनि
- Hashtag Kalakar
- Aug 11
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By Preetika Gupta
कण-कण में समाया है, वो अदृश्य प्रकाश,
ढूँढ़ें कहाँ उसे, जब वो भीतर ही है वास।
मंदिर, मस्जिद, गिरजा, हर द्वारे भटके,
आत्मा का संदेश, क्यों मन से बिसरे?
ये माया का जग, रंगीन है बहुत,
दिखाता है सपने, भरता है झूठ।
दौलत, शौहरत की, ये कैसी है प्यास,
जब मिट्टी में मिलना है, हर साँस का आवास?
जागो रे प्राणी, ये जीवन अनमोल,
ईश्वर का दिया हुआ, ये अनमोल है मोल।
न भीतर झगड़ा, न बाहर विवाद,
प्रेम ही है धर्म, प्रेम ही है प्रसाद।
करुणा की धारा, बहाओ जग में,
हर जीव में देखो, उसी रब के पग में।
मिटा दो ये भेद, अमीर और गरीब,
हम सब हैं एक, ये है सच्चा नसीब।
जब मन हो निर्मल, हृदय हो विशाल,
तब होगी अनुभूति, वो अनंत का काल।
शांत करो चंचल मन, सुनो अंतर्ध्वनि,
यही है आध्यात्म, यही है सच्ची रोशनी।
विश्व के लिए संदेश:- यह कविता विश्व को यह संदेश देती है कि सच्ची आध्यात्मिकता बाहर कहीं खोजने की बजाय, हमारे अपने भीतर ही निहित है। भौतिक सुख-सुविधाओं और बाहरी भेदों में उलझने के बजाय, हमें प्रेम, करुणा और एकता को अपनाना चाहिए। जब हमारा मन शुद्ध और हृदय विशाल होगा, तभी हम उस परम सत्ता का अनुभव कर पाएंगे और जीवन का सच्चा अर्थ समझ पाएंगे। शांति और संतोष पाने का मार्ग हमारे अंतर्मन में ही है।
By Preetika Gupta

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